सुख का बोध….
सुख का बोध होगा कब
अब मेरे पास है सब
पर उलझ हूँ उलझन में
इस ह्रदय की तड़पन में
कब आएगा सुख का मेला
जहाँ हो जीवन का ठेला
कैसे मैं जज़्बात कहूं
इस गम से कैसे बात करूँ
मन अब भी भरमाता है
सारी रात जगाता है
किस कौने में सुख ढूँढू
गम से कैसे मुख मोडूँ
क्या तोडूं सारे बन्धन
कर दूं सब सुख को अर्पण
अब तो अपना पता दे
मेरे सारे दुःख मिटा दे
चाहे जो मुझे सजा दे
बस सुख का बोध करा दे
– रमाकान्त पटेल