ग़ज़ल
सिर्फ तकरीर ही सब कुछ नहीं, तद्वीर भी थी
जो मिला उसमें भी इंसान की तक़दीर भी थी |
चाह थी पर नहीं आना हुआ अबतक यहाँ पर
हाथ थे मुक्त तो क्या? पैर में जंजीर भी थी |
मुख में चाँदी के चमकते कोई चम्मच था नहीं
जनता ने ही चुना राजा, यही तकदीर भी थी |
नील आकाश सितारों से भरा था पूरा
मेघ के साथ चमक, चाँदनी की चीर भी थी |
स्विस खजाने में हमारी जमा संपत्ति बढ़ी
नोट बंदी तथा आपूर्ति की तासीर भी थी |
एक तस्वीर यही जिसको दिखाया उसने
वो नहीं पूर्ण सही, दूसरी तस्वीर भी थी |
युद्ध के साज़ में तैयार हुये हो ‘काली
याद रखना यही उसमे बड़ी शमशीर भी थी |
— कालीपद प्रसाद