ग़ज़ल
चाहती क्या तू ज़माना छोड़ दें ?
ये सभी रिश्ते निभाना छोड़ दें ?
बेवफा बनना सिखाता क्यूँ मुझे
वक्त! मेरे राह आना छोड़ दें |
जिंदगी में बेदना तुम ने दिया
और तू मुझको सताना छोड़ दें |
जन्म से तू आज तक धोखा दिया
माफ़ कर दे अब रुलाना छोड़ दें |
ऐ! खुदा तेरी इनायत है कहाँ
जिंदगी को कह, जलाना छोड़ दें |
जिंदगी में लोग तो सुख चाहते
कष्टकर किस्मत बनाना छोड़ दें |
भाग्य की रेखा खिंची जो ब्रह्म ने
इन लकीरों को बढ़ाना छोड़ दें |
शान से कुछ वक्त जी लूँ शांति से
अब न ‘काली’ मुस्कुराना छोड़ दें |
कालिपद ‘प्रसाद’