अवसाद
जिंदगी भी कितने रंग बदलती है ।जब भी हम सोचते हैं कि सब कुछ अच्छा चल रहा है ,अचानक एक तेज आंधी आती है और सब कुछ बिखेरकर चली जाती है ,यही तो जिंदगी है ।हम कुछ देर के लिए भूल जाते हैं कि जब ये राम सीता ,राधा कृष्ण और शिव पार्वती के जीवन को भी त्रस्त कर देती है तो हम तो मात्र साधारण इंसान हैं जो कुछ पल के लिए अपने कटु सत्य को भूलकर मोह में आनंदित हो जाते हैं ।हर व्यक्ति परेशान है आज,और परेशानी का कारण अपनी इच्छाओं की पूर्ति न हो पाना है । यहीं से शुरू होता है अवसाद का दौर ,विघटन और परिवर्तन का दौर । कोई भी व्यक्ति सम्पूर्ण नहीं फिर किस बात की चिंता ,किस बात का झगड़ा ? शायद कुछ बातों को कहना आसान है लेकिन स्वयं के ऊपर लागू करना अत्यंत कठिन । संपूर्णता को पाने की अभिलाषा हमें कहीं बहुत गहराई की तह में ले जाती है और जब तक आंख खुलती है हमारे पास हाथ मलने के अलावा कुछ भी नहीं होता ।आधुनिक जीवन शैली ने नित्य नए आयाम रच डाले हैं ।पर क्या आज इंसान खुश है ?क्या वो अपने तनाव को कम कर पाता है ?बस चलती ही रहती है ये तनाव की अविरल लकीर और अंत सिर्फ बेबसी ।हाथों में मोबाइल लेकिन रिश्तों से एक अनजानी,दूरी ।पल पल टूटते रिश्ते ,अपनों के लिए तरसती दो आंखें ।क्या यही आधुनिकता है ?क्या यही जीवन की खुशियां हैं ?पैसा ,प्रसिद्धि पाने की चाह जीवन मे विष घोल रही हैं । यही सब चलता रहा तो एक दिन लोग अपनों के लिए सिर्फ एक id बनकर रह जाएंगे ।आधुनिक लहर की कृपा से अवसाद नाम की बीमारी हर व्यक्ति को घेरती जा रही है और उसका नतीजा कि लोग अब हँसने के लिए भी किसी अच्छे सेंटर की तलाश करते हैं ।क्या आप एन्टी बायोटिक दवाओं के सहारे अपना जीवन बिता सकते हैं ?ये सब आपके ऊपर निर्भर करता है कि आपको कैसे जीना है प्यार में जीकर या दवाओं के सहारे । मेरी बातों पर ध्यान जरूर दीजिएगा ।आपकी मित्र
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़