मूक प्रेम
“ना.. बापू, ना.. ना बेचो गंगा को। मैं नहीं बेचने दूंगी गंगा को। गंगा के बिना मैं नहीं रह सकती और ना ही गंगा मेरे बिना रह सकती है। रोज सुबह उठते ही रंभाने लगती है, मुझे नींद से जगाने के लिए। मैं जब तक उसे लाड़, प्यार ना करूं, अपनी पूंछ हिलाती रहती है। उसको खाने के लिए घास लाकर ना दूं तो.. रंभा, रंभा कर मुझे बुलाती रहती है।”.. लक्ष्मी रोए जा रही थी और अपने बापू से मिन्नते कर रही थी।
राम प्रसाद की बेटी थी लक्ष्मी, बारह साल की थी वह। और गंगा, राम प्रसाद की एक बहुत ही सुंदर गाय थी जिससे लक्ष्मी को बहुत स्नेह था। वह उसे इतना प्यार करती थी कि रोज सुबह उठकर स्कूल जाने से पहले, जब तक लाड़, प्यार नहीं करती तो उसे चैन नहीं पड़ता। लक्ष्मी को देखती तो अपनी पूंछ हिला हिला कर वह भी प्यार जताती और कहने की कोशिश करती कि मुझे घास ला कर दो। गंगा की मूक भाषा तो केवल लक्ष्मी ही समझ सकती थी। शाम को स्कूल से आकर लक्ष्मी फिर गंगा को घास ला कर खिलाती और लाड़, प्यार करती। जब भी लक्ष्मी उसके शरीर पर हाथ फेरती, बदले में वह भी पूंछ हिला हिला कर कहने की कोशिश करती कि तुम्हारा प्यार मुझे स्वीकार है।
अबकी बार बारिश में जमीन जोतने के लिए राम प्रसाद को एक बैल की जरूरत थी, इसलिए उसने गंगा को बेचने का निर्णय लिया। गंगा को बेचकर वह बैल खरीदना चाहता था। रामप्रसाद गरीब था, उसमें इतनी सामर्थ्य नहीं कि वह बैल खरीद लें, और बिना बैल के जमीन नहीं जोत पाया तो परिवार का भरण पोषण कैसे करेगा।पर.. लक्ष्मी इतनी छोटी थी कि वह इन सब बातों को नहीं समझती थी! वह तो केवल जानती थी कि..” गंगा मेरी है और गंगा के बिना मैं नहीं रह सकती।”
रामप्रसाद ने गंगा का सौदा पड़ोस के गांव के सेठ से कर दिया। एक दिन सेठ का नौकर उसे लेने आया तो लक्ष्मी जिद करने लगी..” मैं ना ले जाने दूंगी अपनी गंगा को। बापू रोको ना अपनी गंगा को”.. रो रो के उसका बुरा हाल था। उधर गंगा को भी ले जाना बहुत कठिन काम था। नौकर उसकी रस्सी पकड़कर खींचने लगा तो एक जगह खुर गड़ाकर खड़ी हो गई। ऐसी अड़ गई कि उसको हिलाना बहुत मुश्किल था। नौकर उसे मार मार कर ले जाने लगा तो वह पीछे मुड़ मुड़ कर लक्ष्मी को देख कर रंभाने लगी और लक्ष्मी जोर जोर से रोए जा रही थी।..” तेरे बिना मैं कैसे रहूंगी गंगा, ना ले जाओ मेरी गंगा को, बापू रोक लो गंगा को।”
गंगा चली गई तो लक्ष्मी ने दो दिन से कुछ खाया पिया भी नहीं और स्कूल जाना भी छोड़ दिया। रात दिन रो रो कर उसका हाल बेहाल था। मां, बापू ने इतना समझाया पर..वह गंगा को नहीं भूल पाई। एक दिन ऐसे ही आंगन में बैठी हुई थी लक्ष्मी,तभी उसने देखा कि दौड़ दौड़ के गंगा अपने घर की तरफ आ रही है। वह दौड़कर जाकर गंगा से लिपट गई, गंगा पूछ हिलाने लगी। थोड़ी देर बाद सेठ के साथ उसका नौकर भी आ गया लक्ष्मी के घर। नौकर ने कहा..” इसे रस्सी से बांधकर रखा था एक जगह और घास भी दे रखी थी खाने के लिए। पर.. यह रस्सी तोड़कर भाग आई इधर। जब से हम आपकी गाय लेकर गए हैं तब से इसने कुछ खाया पिया नहीं। आज तीन दिन हो गए इसने एक बूंद पानी तक नहीं पिया। और ऐसा लग रहा है जैसे उसकी आंखों से आंसू बह रहे हैं। आप स्वयं ही देख लीजिए, आंखों में आंसू की धार स्पष्ट नजर आएगी।” इधर सेठ ने लक्ष्मी को भी देखा तो एकदम आश्चर्यचकित होकर कहा..” क्या हुआ आपकी बेटी को? एकदम दुबली पतली सी दिख रही है। ऐसा लग रहा है जैसे बीमार है।”
“क्या बताएं सेठ जी, जब से गंगा को बेच दिया है, इसने भी दो- तीन दिन से कुछ खाया पिया नहीं। और ना ही स्कूल गई। बस रोए जा रही है। क्या करूं कुछ समझ में नहीं आ रहा है, यह हाल रहा तो यह जिंदा कैसे रहेगी।”..रामप्रसाद की आंखों में भी नमी दिखाई दी।
लक्ष्मी के सिर पर हाथ फेर कर सेठ ने कहा..”लो बेटा तुम्हारी गंगा को हम तुम्हें सौंपते हैं। अब यह तुम्हारे पास ही रहेगी, इसे हम नहीं ले जायेंगे। आज से गंगा तुम्हारी है हमेशा के लिए।”
“हां.. सेठ जी चाचा सच कह रहे हैं? आप बहुत अच्छे हैं।”.. और वह दौड़कर गंगा से जाकर लिपट गई। लक्ष्मी के चेहरे पर खुशी स्पष्ट झलक रही थी और साथ-साथ गंगा भी जैसे मुस्कुरा रही हो, ऐसा लग रहा था..!!
पूर्णतः मौलिक-ज्योत्स्ना पाॅल।