एक ग़ज़ल
प्यार को जिसने किया स्वीकार है
कर दिया सब कुछ उसी के नाम में
हाथ जिसके अब मेरी पतवार है
चैन से सोया नहीं मैं आज तक
हो गया जब से मुझे भी प्यार है
खो रहा ख्वाबों में जिनके रात दिन
साथ उनके ही मेरा संसार है
साथ उनके ही सदा संजय रहे
प्यार में जिनके नहीं व्यापार है
— संजय कुमार गिरि