कविता – मन कैसे हो धवल
हज़ार वादे झूँठ है एक सच के सामने।
जैसे इंसान खड़ा हो आईने के सामने।।
बेमतलब के झगड़े होते आमने सामने।
रोज विश्वासघाती दिखे आमने सामने।।
शकुनि सी चाल खेलते है लोग सामने।
हाथ मलते रहते दुर्योधन से लोग सामने।।
ध्रतराष्ट्र सा मन विकारों से ढंका सामने।
मन कैसे हो धवल दुशासनों के सामने।।
रोज द्रोपदी सी जनता छल रहे है सामने।
मोन है सारे ही देख कर कुकृत्य सामने।।
सजातीय विजातीय में डटे आमने सामने।
धर्मयुद्ध नित्य ही कर रहे पुरोहित सामने।।
— कवि राजेश पुरोहित