कविता

हम कहाँ जा रहे है?

कभी आपने सोचा? अपने अपनों से दूर,
रिश्ते हो गये हैं कितने लाचार और मजबूर ।
किसी को एक दूसरे के लिए नहीं है वक्त ,
वाई- फाई की दुनिया हो गई है हरवक्त।
भले ही ये सब हमें किया है अपडेट,
पर रिश्ते ने रिश्तों का लगा दिया रेट ।
दुनिया तो हो गई अब आन लाईन,
पर रिश्ते सारे हो गये अब बेलाईन।
वक्त रहते संभल जाना ही होगी समझदारी ,
तभी हर रिश्ते के साथ होगी वफादारी ।
जब रिश्ते समय के साथ और होगा अपडेट,
फिर उससे भी तगडा झटका देगा आने वाला डेट।
चलो माना कि तेरी है ये मजबूरी,
फिर भी कुछ तो कम हो सकती है दूरी।
क्या करोगे इतना कमा के ये धन,
जब स्थिर ही ना रहेगा ये रिश्ता और मन।
कमाना बुरा नही कमाओ आवश्यकता की पूर्ति के लिए धन,
क्योंकि इच्छाएँ घटती नहीं और ना भरेगा कभी मन।

एक दिन सब यही का यहीं रह जाएगा ,
साथ किसी के कुछ भी नहीं जाएगा।
कमा सकते हो तो कमाओ इज्जत और शौहरत,
वर्ना किसी भी काम की नहीं होगी ये दौलत।
मृदुल