मौकापरस्त सच
तुम कहते हो कि तुम झूठ नही बोलते,
अच्छी बात है,
पर क्या सच बोलते हो हर बार
बोलते होंगे शायद पर क्या
किसी को अपने सच से खुश करते हो,
सच तो हमेशा कड़वा होता है
ये कह कर क्यों सच को बदनाम करते हो
क्यों न हम सच भी ऐसा बोलें जो खुशियां फैलाये,
थोड़े शालीनता का लिबास पहना के और
पाक मक़सद के कुछ आभूषणों से सजा के,
हम सच ऐसे बोले कि हर दिल को भाये,
सच कोई तेज तलवार नही, कि किसी का गला काट देगा
ये तो नरम सा चक्कू है जो, मक्खन के दिल मे उतर जाए
और फिर सच बोलने से डरना क्या,
आपके झूठ के पीछे से भी झाँककर सब को,
अपनी उपस्थिती दर्ज करा ही देता है
पर दोस्तों ये भी इक सच है,
ये सच भी न अब बड़ा मौका परस्त हो गया है,
कहीं मक्खन लिपटा मिलता है तो कहीं,
पत्थर से लिपटा हुआ …सुमन”रूहानी”