ग़ज़ल
किसी के हित में अपनी जान दे देना मुहब्बत है,
किसी की आँख से आँसू चुराना भी इबादत है ।।
किसी मंदिर में जा करके चुरा लें हम नई सैंडल
उसे फिर ढूँढ़कर ‘स्लीपर’ दिलाना भी शराफत है ।
तुम्हारा दिल कोई तोड़े,उड़ा दे चैन रातों की
करे ‘मी टू’ नहीं फिर भी ,तो समझो ये इनायत है ।।
गधा घोड़ा बनेगा क्या, मगर अजमा रहे हैं सब,
हमारा देश है बाबू!, कौन-सी ये बिलायत है?
सही जो है,कहूँ हरदम, बुरा सब मान जाते हैं,
समझना है जिसे समझें, कि भइया, ये अदावत है ।
— सुरेश मिश्र