“कुंडलिया”
“कुंडलिया”
अच्छे लगते तुम सनम यथा कागजी फूल।
रूप-रंग गुलमुहर सा, डाली भी अनुकूल।।
डाली भी अनुकूल, शूल कलियाँ क्यों देते।
बना-बनाकर गुच्छ, भेंट क्योंकर कर लेते।।
कह गौतम कविराय, हक़ीकत के तुम कच्चे।
हो जाते गुमराह, देखकर कागज अच्छे।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी