लघुकथा

आशीर्वाद

”दादा जी, आज छुट्टी है, हम बाहर खेलने चले जाएं?” अमित और रुनकी ने निहोरा किया.
”आज किस बात की छुट्टी है?” दादा जी ने अनजान बनते हुए पूछा.
”लीजिए, आपको इतना भी नहीं पता, कि आज गुरु नानक जयंती है!” नन्ही-सी रुनकी ने झुनकते हुए कहा.
”गुरु नानक जयंती की छुट्टी है!” दादा जी ने आश्चर्य प्रकट करते हुए कहा. ”अच्छा ये बताओ, कि गुरु नानक जयंती को और क्या कहते हैं?”
”हमें क्या पता, हमें तो कल स्कूल में बस गुरु नानक की दो-तीन कहानियां सुनाई थीं, जो कुछ समझ में आईं, कुछ नहीं” दोनों ने मायूसी से कहा.
”चलो बैठो मैं तुम्हें बताता हूं, कि गुरु नानक जयंती को और क्या कहते हैं? गुरु नानक जयंती को गुरु पर्व भी कहते हैं और प्रकाश पर्व भी. गुरु नानक जी को सिख धर्म के संस्थापक या आदि गुरु भी कहा जाता है, इसलिए उनकी जयंती को गुरु पर्व कहा जाता है. उन्होंने ज्ञान का प्रकाश किया था, इसलिए उनकी जयंती को प्रकाश पर्व भी कहा जाता है.”
”वाह दादा जी, यह तो आपने बहुत अच्छी बात बताई.” दोनों बच्चे बाहर खेलना भूल जमकर बैठ गए थे- ”अब उनका कोई प्रेरक किस्सा भी सुना दीजिए.”
”लो भाई, सुन लो.” दादा जी ने किस्सा सुनाना शुरु किया.
”गुरु नानक एक बार एक गांव में गए. उस गांव के लोग नास्तिक विचारधारा के थे. वे भगवान, उपदेश और पूजा-पाठ में बिल्कुल भी विश्वास नहीं रखते थे. वे साधुओं को ढोंगी की संज्ञा देते.
उन्होंने नानक के प्रति कटु वचन कहे और उनका तिरस्कार भी किया, तथापि नानक देव शांत ही रहे. दूसरे दिन जब वे वहां से रवाना होने लगे तो लोग उनके पास आए और उन्होंने कहा, ‘जाने से पहले आशीर्वाद तो देते जाएं.’
नानकदेव मुस्करा दिए और बोले, ‘आबाद रहो.’
वे जब समीपस्थ ग्राम में पहुंचे, तो वहां के लोगों ने उनका उचित सत्कार किया तथा रहने-खाने का भी उचित प्रबंध किया.
नानक जी ने उनके समक्ष प्रवचन किया. प्रवचन समाप्ति के उपरांत श्रद्धालु लोगों ने उनसे आशीर्वाद देने का आग्रह किया, तो नानकदेव बोले, ‘उजड़ जाओ.’ शिष्यों ने ये विचित्र आशीर्वाद सुने तो उनकी कुछ समझ में न आया.
”दादा जी यह बात तो हमें भी समझ में नहीं आई, कल स्कूल में भी एक लड़के ने यह किस्सा सुनाया था.” अमित बीच में ही बोला.
”समझ में आ जाएगा, पहले पूरा किस्सा ध्यान से सुनो!” दादा जी ने किस्सा आगे बढ़ाया.
”उनमें से एक से न रहा गया और वह पूछ ही बैठा, ‘देव, आपने तो बड़े ही विचित्र आशीर्वाद दिए हैं. आदर करने वालों को तो उजड़ जाने का आशीर्वाद दिया है, जबकि तिरस्कार करने वालों को आबाद रहने का. मेरी समझ में तो कुछ भी नहीं आया, कृपया स्पष्ट करें.’
तब नानकदेव हंसते हुए बोले, ‘सज्जन लोग उजड़ेंगे तो वे जहां भी जाएंगे, अपनी सज्जनता के कारण उत्तम वातावरण बना लेंगे, किंतु दुर्जन यदि अपना स्थान छोड़ें तो वे जहां जाएंगे, वहीं का वातावरण दूषित बनाएंगे, इसलिए उन्हें आबाद रहने का आशीर्वाद दिया.’
नानक देव के वचन सुनकर शिष्य ने उनका चरण स्पर्श किया और कहा, ‘गुरु देव आप जो भी करते और सोचते हैं, उनके पीछे ज्ञान छिपा होता है जिसे हम तुच्छ प्राणी समझ नहीं सकते हैं.’
अब समझ में आया?” दादा जी ने पूछा.
”हां दादा जी, अब समझ में आ गया. अब हम खेलने जाएं?”
”पहले बाबा जी का कड़ाह प्रसाद ग्रहण करो और फिर खेलने जाओ.” मां ने सबको प्रसाद देते हुए कहा.
”चलते-चलते सुनते जाओ, आज गुरु नानकदेव जी का 550वां प्रकाश पर्व है. अपने दोस्तों-सखियों को भी बताना.” दादा जी ने बाहर जाते हुए बच्चों से कहा.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

2 thoughts on “आशीर्वाद

  • लीला तिवानी

    गुरु नानकदेव के 550वें प्रकाश पर्व की शुभकामनाएं-
    गुरु नानक सिखों के प्रथम (आदि गुरु) माने जाते हैं। इनके अनुयायी इन्हें नानक, नानक देव जी, बाबा नानक और नानकशाह नामों से संबोधित करते हैं। लद्दाख व तिब्बत में इन्हें नानक लामा भी कहा जाता है। नानक अपने व्यक्तित्व में दार्शनिक, योगी, गृहस्थ, धर्मसुधारक, समाजसुधारक, कवि, देशभक्त और विश्वबंधु – सभी के गुण समेटे हुए थे। कई सारे लोगो का मानना है कि बाबा नानक एक सूफी संत भी थे । और उनकेसूफी कवि होने के प्रमाण भी समय-समय पर लगभग सभी इतिहासकारों द्वारा दिए जाते है । गुरु नानक जयंती के मौके पर गुरु नानक की दी गई शिक्षाओं को याद किया जाता है. इसके लिए देशभर में तरह-तरह के आयोजन भी होते हैं.

    • रविन्दर सूदन

      आदरणीय बहन जी, नानक जी के प्रकाशोत्सव पर सभी भाई बहनो को बहुत बहुत बधाई । नानक जी के दो शिष्य थे बाला और मर्दाना जो जिंदगी भर उनके साथ रहे । बाला जी चौथे गुरु अर्जुन देव जी के समय उन्हें नानक जी के किस्से सुनाया करते थे । वह सच्ची बातें बाला जी की साखी (साक्षी अर्थात गवाह) नामक पुस्तक में गुरु अर्जुन देव जी ने कलमबंद करवाई। कई बातों के अतिरिक्त एक किस्सा है कैसे आँख बंद करते ही बाला जी मरदाना जी और नानक जी मक्का पहुँच गए । वहां जाकर मक्का की और पैर करके लेट गए । जब एक मौलवी ने उन्हें कहा की खुदा की और पैर करके क्यों लेटे हो ? नानक जी ने कहा जहाँ खुदा ना हो वहां मेरे पैर कर दो । मौलवी ने उनके पैर पकड़ कर दूसरी और घुमाये तो मक्का उसी और घूम गया । नानक जी ने कहा खुदा सब जगह है ।

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