गज़ल
दिखी खिलाफत चाहें नहीं बदलते हम
हुजूम देख के रस्ता नहीं बदलते हम
वफ़ा ख़ुलूस मुहब्बत से नापते क़द को
हुजूम देख के रस्ता नहीं बदलते हम.
लुभा सकी न कभी दौलतें जमाने की,
चले ईमान पे रस्ता नहीं बदलते हम।
न जाने कितनी पुरानी धरी बसी यादें
किसी भी याद का चेहरा नहीं बदलते हम.
जो सोच लेते है इक बार कर गुज़रते हैं
हो आंधियाँ भी इरादा नहीं बदलते हम.
खुदा का शुक्र रेखा दौरे खुदपरस्ती में।
यकीन जानिये रिश्ता नहीं बदलते हम।।
— रेखा मोहन