इच्छा
पंछी बन मैं उड़ूं एक दिन
पंख फैलाकर नील गगन में,
रंग बिरंगी जैसे तितलियां
उड़ती है, खुशी से चमन में।
बातें करती है पुष्पों से और
लेती है उनसे परागकण,
मैं भी करूं बादलों से बातें
और अपना बहलाऊं मन।
पूछूं मैं तारों से जाकर
चमकते कैसे वे रातों मे,
मैं भी चमकूं उनके जैसे
व्यर्थ न गवाऊं समय बातों में।
मिलना है चंदा मामा से मुझे
सब बच्चों का है बहुत प्यारा,
सीखूं उनसे बांटना खुशियां
करना जग को उजियारा।
पाने से ज्यादा देने में सुख है
उनसे हमें है सीख, सीखना
बनना हमें मिसाल एक दिन
जग में अमर है, हो जाना।
बनके फूल मैं खिलूं चमन में
फैलाऊं सुगंध चारों ओर,
बाटूं मधुरस भंवरें,मधुकर को
खुशियों का होगा न कोई छोर।
मैं नन्हा सा बालक हूं एक
हे प्रभु! सपने कर दो साकार,
मेरी ‘इच्छा’ अधूरी न रह जाए
मिले उसे एक सही आकार।
पूर्णतः मौलिक-ज्योत्स्ना पाॅल।