बाल कविता

इच्छा

पंछी बन मैं उड़ूं एक दिन
पंख फैलाकर नील गगन में,
रंग बिरंगी जैसे तितलियां
उड़ती है, खुशी से चमन में।
बातें करती है पुष्पों से और
लेती है उनसे परागकण,
मैं भी करूं बादलों से बातें
और अपना बहलाऊं मन।
पूछूं मैं तारों से जाकर
चमकते कैसे वे रातों मे,
मैं भी चमकूं उनके जैसे
व्यर्थ न गवाऊं समय बातों में।
मिलना है चंदा मामा से मुझे
सब बच्चों का है बहुत प्यारा,
सीखूं उनसे बांटना खुशियां
करना जग को उजियारा।
पाने से ज्यादा देने में सुख है
उनसे हमें है सीख, सीखना
बनना हमें मिसाल एक दिन
जग में अमर है, हो जाना।
बनके फूल मैं खिलूं चमन में
फैलाऊं सुगंध चारों ओर,
बाटूं मधुरस भंवरें,मधुकर को
खुशियों का होगा न कोई छोर।
मैं नन्हा सा बालक हूं एक
हे प्रभु! सपने कर दो साकार,
मेरी ‘इच्छा’ अधूरी न रह जाए
मिले उसे एक सही आकार।

पूर्णतः मौलिक-ज्योत्स्ना पाॅल।

*ज्योत्स्ना पाॅल

भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त , बचपन से बंगला व हिन्दी साहित्य को पढ़ने में रूचि थी । शरत चन्द्र , बंकिमचंद्र, रविन्द्र नाथ टैगोर, विमल मित्र एवं कई अन्य साहित्यकारों को पढ़ते हुए बड़ी हुई । बाद में हिन्दी के प्रति रुचि जागृत हुई तो हिंदी साहित्य में शिक्षा पूरी की । सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर एवं मैथिली शरण गुप्त , मुंशी प्रेमचन्द मेरे प्रिय साहित्यकार हैं । हरिशंकर परसाई, शरत जोशी मेरे प्रिय व्यंग्यकार हैं । मैं मूलतः बंगाली हूं पर वर्तमान में भोपाल मध्यप्रदेश निवासी हूं । हृदय से हिन्दुस्तानी कहलाना पसंद है । ईमेल- [email protected]