कुंडलियाँ छ्न्द…. नेकी करना हो गया, बहुत बड़ा अभिशाप।
कुंडलियाँ छ्न्द….
नेकी करना हो गया, बहुत बड़ा अभिशाप।
इस कलियुग में है नही, इससे बढ़कर पाप।
इससे बढ़कर पाप, मिलेगी मिट्टी काया।
कैसे हो निर्बाह, जहां ठगनी है माया।
रिश्ते नाते गौण, न बाकी “अनहद” रेकी।
कलियुग का अभिशाप, न करना अब तू नेकी।
अनहद गुंजन 24/11/18