तनहाईयों से बातें
तनहाईयो में बैठ के, बातें करो कभी।
ख़लवत में खुद से भी, मुलाकातें करो कभी।
देखो तो कभी गौर से, कितनी हैं खामियां,
इनको मिटाने की, करामातें करो कभी।
बेख़्वाब आंखो में गुजारी, कितनी शबे ग़म,
औरों के दर्द में भी, जगराते करो कभी।
बेजान, हसरतों को लिये, भागते रहे,
अब रुह से मिलन की, बरातें करो कभी।
कितने बहाये अश्क हैं “स्वाती” कहां कहां
उनके कदम धो दें वो, बरसातें करो कभी।
— पुष्पा “स्वाती”