हिन्दी
नये अब गुल खिलाना चाहती है।
ये खुलकर मुस्कुराना चाहती है।
दिलों में घर बनाना चाहती है।
नहीं कोई खजाना चाहती है।
शिकायत हर मिटाना चाहती है।
सियासत को हराना चाहती है।
नहीं कुछ भी पुराना चाहती है।
नये नगमे सुनाना चाहती है।
अदावत को मिटाना चाहती है।
समय अच्छा बिताना चाहती है।
जहां को जगमगाना चाहती है।
मुहब्बत ही लुटाना चाहती है।
वतन को सब बताना चाहती है।
नहीं कुछ भी छुपाना चाहती है।
नहीं उर्दू से इसका बैर कोई,
विदेशी को हटाना चाहती है।
क़दम मज़बूत इसकेहैं ज़मीं पर,
नहीं अब डगमगाना चाहती है।
वतन से है मुहब्बत की ज़मानत,
हमें शीशा दिखाना चाहती है।
— हमीद कानपुरी