इन्तजार जिन्दगी के बाद का……..
इन्तजार जिन्दगी के बाद का
कल जिन्दगी से अचानक मुलाकात हो गयी। उसने पूछा, किसे ढूढते हो मानस ? मुझे या किसी और को ? हाँ, किसी और को ही खोजते होगे क्योंकि मै तुम्हारे साथ ही रही पर तुमने कभी ध्यान ही नही दिया। तुम होते चले गये औरों क,े लेकिन तुम्हारा कौन हुआ ? कभी कोशिश की, रोते को हँसाने की, कभी कोशिश की, रूठों को मनाने की। कभी कभी तो खुद को भूलकर, जबरन मुस्कुराने की। पर मिला क्या ? मुझे एक नाम बताओ जिसे फ़िकर हो तुम्हारी खुशी की। याद है, अरे कहाँ से याद होगा ? सब लगे है खुद की फ़िकर में और तुम..?
चल एक काम कर, अब तलक तूने जितनों को अपना बनाया। उनमें से एक भी ऐसा खोजकर दिखा जो तेरा अपना हो। जो तेरे बारे में सोचता हो। कितनी बार तेरा दिल टूटा, मैं चुप रही, कितनी बार तुझे तेरे अपनों ने ठगा, मैं चुप रही। कितनी बार तुझे स्वार्थ के तवे पर पकाकर जूठन की तरह फेक दिया गया, मैं चुप रही। देखती रही तुझे अकेले में रोता हुआ। देखती रही तुझे तुमको ही समझाते हुये। देखती रही तुझे सबकुछ भूलकर फिर से उन्हीं के पास जाकर माफी माँगते हुये जिनकी गलतियों की सजा तुम ने भोगी। तेरे रिश्ते नातेदार तक तो ठीक, पर हर कोई तुम्हारा उपयोग करता रहा। फिर घर के बाहर फेंक दिया जैसे किसी जूठी पत्तल को। और तू आज भी जीता है उनकी खुशी के लिये।
अब बस, बहुत हुआ। तंग हो गयी हूँ तेरे इस रवैये से। मैं तेरा साथ नहीं दे सकती। तेरी आँखों में आँसू नहीं देख सकती। तुझे भीतर से रिसता हुआ देखना मुझे गवारा नहीं है। अगर अब भी तेरे साथ रही तो तू फिर से खड़ा होगा अपना भोग करवाने के लिये। तेरा समर्पण, त्याग और प्रेम तू नहीं छोड़ सकता। इसलिये मैं जा रही हूँ।
मैं जाऊँगी तो मेरी बहन मिलेगी तुझे। हमारी आपस में तो बिलकुल नहीं बनती। जहाँ मै होती हूँ वहाँ वो नहीं और जहाँ वो होती है वहां मैं नही। लेकिन मेरी बहन तुझे अपनी गोद में चैन और सुकून से सूलायेगी। तेरा ख्याल रखेगी। तुझे दुलारेगी और हमेशा के लिये अपना बनाकर रखेगी। एक बार जो उसका हो गया वो फिर किसी का नहीं होता। तो जा अब जी ले खुद को, मैं चली। मानस उसी चैराहे पर खड़ा अभी भी इन्तजार कर जिन्दगी की बहन का।
सौरभ दीक्षित “मानस”