ऐ, सुनो !
ऐ, सुनो !
मैं तुम्हारी तरह
माँग में सिन्दूर भरकर नहीं घूमता।
लेकिन मेरी प्रत्येक प्रार्थना में
सम्मिलित पहला ओमकार तुम ही हो।
ऐ, सुनो!
मैं तुम्हारी तरह
आँखों में काजल नहीं लगाता।
लेकिन मेरी आँखों को सुकून देने वाली
प्रत्येक छवि में तुम्हारा ही अंश दिखता है।
ऐ, सुनो!
मैं तुम्हारी तरह
कानो में कंुडल नहीं डालता ।
लेकिन मेरे कानों तक पहुँचने वाली
प्रत्येक ध्वनि में तुम्हारा ही स्वर होता है।
ऐ, सुनो!
मैं तुम्हारी तरह
गले में मंगलसूत्र बाँधकर नहीं रखता।
लेकिन मेरे कंठ से निकले प्रत्येक शब्द का
उच्चारण तुम से ही प्रारम्भ होता है।
ऐ, सुनो!
मैं तुम्हारी तरह
पैरों में महावर लगाकर नहीं चलता।
लेकिन मेरे जीवन लक्ष्य की ओर जाने वाला
प्रत्येक मार्ग, तुमसे ही प्रारम्भ होता है।
ऐ, सुनो!
मैं तुम्हारी तरह
पैर की अंगुलियों में बिछिया नहीं बाँधता।
लेकिन मेरी जीवन की प्रत्येक खुशी की डोर
तुमसे ही बँधी हुयी है।
सौरभ दीक्षित “मानस”