पथिक
पथिक
उठ , चल , रुक नहीं,
पथिक तू , थक नहीं !
मंज़िल अभी दूर है ,
ऊपर देख बाक़ी अभी सूरज का नूर है!
आगे बढ़, तू रुक मत,
छोड़ दे ,यह बाल हठ !
बढ़ा कदम तू , आगे बढ़,
अपनी कमजोरियों से तू लड़ !
उठ चल ,रुक नहीं,
पथिक ! तू थक नहीं !
उठ, डगर कठिन है रे,नहीं आसान
बढ़ेगा तू, तो देख, झुकेगा यह नीला आसमान !
समझ, वक़्त कर रहा है तेरा इंतज़ार ,
जब होगा विजयी,पहनाएगा वो तुझे हार !
मान जा जोश बढ़ा , होश में तू आ,
जितना है मुक्कदर तेरा ,जल्दी से तू उसे पा !
उठ , चल , तू रुक नहीं,
पथिक! तू थक नहीं !
तू रुक नहीं , राहें मिलती रहेगी
तू बढ़, सफल हो, जीत
साहसी बन , ओ मेरे मीत !!
— दीपक गुप्ता “दर्शन”