कविता

पथिक

पथिक
उठ , चल , रुक नहीं,
पथिक तू , थक नहीं !
मंज़िल अभी दूर है ,
ऊपर देख बाक़ी अभी सूरज का नूर है!
आगे बढ़, तू रुक मत,
छोड़  दे ,यह बाल हठ !
बढ़ा कदम तू , आगे बढ़,
अपनी कमजोरियों से तू लड़ !
उठ चल ,रुक नहीं,
पथिक ! तू थक नहीं !
उठ, डगर कठिन है रे,नहीं आसान
बढ़ेगा तू, तो देख, झुकेगा यह नीला आसमान !
समझ, वक़्त कर रहा है तेरा इंतज़ार ,
जब होगा विजयी,पहनाएगा वो तुझे हार !
मान जा जोश बढ़ा ,  होश में तू आ,
जितना है मुक्कदर तेरा  ,जल्दी से तू उसे पा !
उठ , चल , तू रुक नहीं,
पथिक! तू थक नहीं !
तू रुक नहीं , राहें मिलती रहेगी
तू बढ़, सफल हो, जीत
साहसी बन , ओ मेरे मीत  !!
दीपक गुप्ता “दर्शन”

दीपक गुप्ता 'दर्शन'

सहायक प्रोफ़ेसर (कम्प्यूटर विभाग ) जी. एल . बजाज इन्स्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलोजी & मेनिज्मन्ट ग्रेटर नोइडा