गज़ल
न कर बर्बाद अपना वक्त ए दीवाने जा
नसीब अपना कहीं और आज़माने जा
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तेरे अपनों को तो फुर्सत नहीं है सुनने की
किस्से अपने अब तू गैरों को सुनाने जा
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पहले से ताल्लुकात न रहे हों अब मगर
मिज़ाज़ पूछने की रस्म तो निभाने जा
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नाकामयाब हो के आखिर आ गया वापिस
कहा था तुझसे किसने कि उसे मनाने जा
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ज़रूरतों ने आ के कान में कहा मुझसे
सुबह हो गई है, चल उठ, कमाने जा
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आभार सहित :- भरत मल्होत्रा।