गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल – सँभाल कर रखना

प्रेम की ज्योति बाल कर रखना
प्रीत के पल सँभाल कर रखना

छोड़ना तुम सभी गमों को अब
पाँव तो तूम सँभाल कर रखना

खुद कभी तुम चलो नहीं चालें
हर बला रोज़ टाल कर रखना

राह चलना ज़रा सँभल कर तुम
हर उत्तर पर सवाल कर रखना

कहन पर ध्यान दे सदा चौकस
ग़म सीने में न पाल कर रखना

दिल दुखाये कभी यही दुनिया
तो उसे दरकिनार कर रखना

बैठने की कोई करे कोशिश
तो ‘रश्मि’ पाँव सँभाल कर रखना

रवि रश्मि ‘अनुभूति’