निष्कर्ष
”तुमने मेरा दामन छोड़ दिया क्या?” भेजे हुए संदेश से उम्मीद तनिक नाउम्मीद दिख रही थी.
”ऐसा कैसे हो सकता है, उम्मीद का दामन छोड़कर तो विश्वास के अस्तित्व की संकल्पना भी नहीं की जा सकती.” विश्वास ने विश्वासपूर्वक संदेश का प्रतिउत्तर दिया.
विश्वास ने सदेश तो भेज दिया था, पर सोच रहा था कि शायद उम्मीद का संदेश कोई संकेत दे रहा हो.
”सॉरी दीदी, आपको जगा रहा हूं, तनिक मेरी मदद करो.” उसने चेतना को जगाते हुए कहा.
”मैं सो गई थी क्या? अगर ऐसा है तो तुमने मुझे जगाकर अच्छा ही किया, चेतना को तो हमेशा जगा हुआ ही होना चाहिए. चेतना जागृत है तो विश्वास है, विश्वास है तो उम्मीद है. तुम्हें वो अवॉर्ड वाला किस्सा याद है न!”
”कौन सा? अच्छा वो आशा का. हिंदी ऑफिस से लेख वापिस आया और उसी लेख पर उसे राज्य स्तर का पुरस्कार मिल गया था.” विश्वास ने दृढ़ता से कहा था.
”और वो भी याद होगा. उस पुरस्कार के बाद उसने फिर एक शोधपत्र तैयार किया था, तभी भारत सरकार की पुरस्कार प्रतियोगिता आ गई थी. उसने वह शोधपत्र भेज दिया था और उसे राष्ट्रीय स्तर का पुरस्कार मिल गया था.” चेतना उत्साहित थी.
”दीदी, वो भी तो याद होगा न! दिल्ली सरकार ने उसकी कविता-संग्रह की पांडुलिपि खेदसहित वापिस कर दी थी, उसने इस उम्मीद से सहेजकर रख दी थी, कि यह किताब छपेगी जरूर और उसे भारत सरकार ने पब्लिश करवाया था.” विश्वास चहक उठा था.
”और तो और, मैं कल कह नहीं रही थी, कि महान भारतीय वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बोस को जितना सम्मान निलना चाहिए था, नहीं मिला और आज समाचार आ गया है- ”ब्रिटिश पौंड पर छप सकती है वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बोस की तस्वीर” चेतना ने कंधे उचकाकर कहा.
”और वो समाचार भी, भारत के आईटी उद्योग-सितारे अजीम प्रेमजी को फ्रांस का सर्वश्रेष्ठ नागरिक सम्मान ‘शेवेलियर डी ला लीजन डी ऑनर’ दिया जाएगा.” विश्वास उछल रहा था.
”इसलिए चिंता मत करो, उम्मीद का दामन थामे रहने से ही विश्वास विश्वसनीय रहता है.” चेतना की चेतनता ने निष्कर्ष निकाला था.
”उम्मीद का दामन थामे रहने से ही विश्वास विश्वसनीय रहता है.” इस एक वाक्य में ही शायद सफल जीवन का सार समाया हुआ है. विश्वास विश्वसनीय रहना भी बहुत जरूरी होता है.