“गीतिका”
मापनी- 212 212 212 212, समान्त- बसाएँ, आएँ स्वर, पदांत- चलो
“गीतिका”
साथ मन का मिला दिल रिझाएँ चलो
वक्त का वक्त है पल निभाएँ चलो
क्या पता आप को आदमी कब मिले
लो मिला आन दिन खिलखिलाएँ चलो।।
जा रहे आज चौकठ औ घर छोड़ क्यों
खोल खिड़की परत गुनगुनाएँ चलो।।
शख्स वो मुड़ रहा देखता द्वार को
गाँव छूटा कहाँ पुर बसाएँ चलो।।
क्यों शहर जा रहे हो वहॉं कौन है
दार मिट्टी सुहागा उगाएँ चलो।।
खैर को बैर क्योकर बनाने लगे
धूल की किरकिरी वा हटाएँ चलो।।
ख़ास गौतम नहीं तो बनाओ उसे
खाशियत की दवा ला पिलाएँ चलो।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी