गज़ल
यक-ब-यक चल पड़ी हवा जैसे
पूरी हो गई हर दुआ जैसे
तुमको देखा तो यूँ महसूस हुआ
सामने आ गया खुदा जैसे
मैंने हर बार तुझे यूँ माँगा
बच्चा कोई माँगे खिलौना जैसे
इस तरह तूने भुलाया मुझको
तू मेरा कभी न था जैसे
ज़िक्र तेरा निकलते ही फिर से
हर ज़ख्म हो गया हरा जैसे
— भरत मल्होत्रा