कविता
कुछ अर्थों को
न खोजें
तो बेहतर
कुछ कार्यों की
कारणता को
न तलाशें
तो बेहतर
कुछ खुरदरे से अहसासों को
न तराशें
तो बेहतर
कुछ बेतकलुफ़्फ़ से
दरियाओं की मंजिल
न समझे
तो बेहतर
रूबरू हो रहे
नित नये क़िरदारों की वजहें
न जानना चाहें
तो बेहतर
ज़िंदगी की ख़ुशमिजाजियों के वास्ते
कुछ बेवजह ,बेरोक
बेबाक़ भी चलता रहे
तो बेहतर
जिंदादिली
कुछ न चाहे
इससे इतर …..
— डॉ. अनिता जैन “विपुला”