खड़गपुरिया कविता… कटिंग नहीं फुल दे रे भाई…!!
चा… कटिंग नई फुल दे रे भाई…
लगता है अब लपेट कर निकलना पड़ेगा रजाई …
ठंडा इतना कि बॉडी का बन गया कुल्फी
भूल गया चैटिंग – वैटिंग और सेल्फी
सबेरे उठ कर नहाने में याद आ गई मां लक्ष्मी – सरस्वती
बाइक चलाया तो दिन में नजर आ गया बड़ा बत्ती
हिल रहा बदन और नार्मल पानी भी लग रहा चील्ड
हाथ – मुंह धोया तो लगा जैसे जीत लिया कोई शील्ड
बंद हुआ अड्डाबाजी , फेसियल और स्पा
इस ठंडा का एक ही सहारा गरम – गरम चा
कुहासा से बचना रे भाई …
रात को जल्दी घर घुस जाना
एक बार ठंडा जो पकड़ा
तो मुश्किल होगा छुड़ाना
काम करो और घर को बनाओ डेस्टीनेशन
रात में काट लिया कुत्ता तो
लेना पड़ेगा 14 इंजेक्शन …
— तारकेश कुमार ओझा