मुक्तकत्रय
1)
सहज सजग होकर चलना।
निज मान न खोकर चलना।
छल-कपट न रखना मन में-
हृदय वसन धोकर चलना।
2)
खुला आसमान और पंख भी हैं पर परवाज़ कहाँ है।
लिख दिये गीत, सज गये साज़ पर वो आवाज़ कहाँ है।
केवल बातों से न सुधरा है न सुधरेगा यह समाज,
बुझा दे जो नफ़रतों की आग वो शहनवाज़ कहाँ है ।
3)
ख्वाहिशें कभी न खत्म कर इन्हें तू बुलन्द रख।
अपनी दोस्ती की फेहरिस्त के लोग चन्द रख।
छोड़ सारे हासिल-बट्टे, नेक-नीयत बनकर –
दिली मुहब्बत से क़िताब नफ़रतों की बन्द रख।
— डॉ. अनिता जैन “विपुला”