हूँ मैं दीप माटी का
हूँ मैं दीप माटी का
किंतु अंधेरों से लड़ूँगा
काट कर तम को जड़ से
प्रकाश की ओर बढूँगा।
चाँद की मनमानी है
तारों ने भी ठानी है।
लड़कर अमावस्या से
पूर्णिमा की ओर बढूँगा।
हूँ मैं दीप माटी का
किंतु अंधेरों से लड़ूँगा।
मत समझो मैं छोटा दीप
मेरा जलना ही है प्रीत
साथी मेरे तेल और बाती
लेकर उनको साथ जलूँगा।
हूँ मैं दीप माटी का
किंतु अंधेरों से लड़ूँगा।
मिट्टी से मैंने जन्म लिया
कुम्हार की ताकत से जिया
आग में तपकर मैं तो
खरा सोना बन जियूँगा।
हूँ मैं दीप माटी का
किंतु अंधेरों से लड़ूँगा।
मत भेद करो बड़े छोटे का
गुणों से तुम आंको सबको
सदैव उर्जावान होकर
जग को मैं उर्जित करुँगा।
हूँ मैं दीप माटी का
किंतु अंधेरों से लड़ूँगा।
— निशा नंदिनी
तिनसुकिया,असम