ग़ज़ल : क़त्ल
ऐसे किया है कत्ल, के ईमान ले गये।
यारों वो जाते जाते, मेंरी जान लें गये।
आया न कुछ नज़र, सिवा उनकी अदाओं के,
चारो चरफ फैला हुआ, जहान ले गये।
देखा जो उनका ताब, तो नज़रें न टिक सकी,
पल भर में छीन कर मेंरा, गुमान ले गये।
चेहरे के नूर में था, मुकम्मल जहां यारों,
मेरे दर-ओ-दीवार की, वो शान ले गये।
किससे कहूं ख़ुदाया ख़ैर, वो खुद ही थे सामने,
जाते हुये जमीन-ओ-आसमान ले गये।
तौबा वो क्या मंज़र था, अपनी ख़बर नहीं,
मैं कौन हूं क्या हूं, मेरी पहचान ले गये।
— पुष्पा “स्वाती”