गज़ल
चुप रहों हम दखल न करते हैं
हम मुहब्बत की बात करते हैं
शायराना अदब से मात करते हैं
जब मुहब्बत की बात करते हैं
खोंफ ऐसा दिल पे छाया हैं
वक्त समझ कर कहीं निकलते हैं
बेगुनाही भले ही हो साबित
जख्म लेकर डरे से चलते हैं
कदम ठहरा नहीं पलट पाता हैं
वक्त के साथ जो न चलते हैं
सादगी उसकी देखिये साहिब
भीड़ में अलग ही लगते हैं
जोश में होश लाज़मी धरते
डगर रेखा समझ बदलते हैं
— रेखा मोहन