ग़ज़ल
माना कि ये ज़माना बेरहम है दोस्तो
पर आपके होते हुए क्या गम है दोस्तो
इतना प्यार आपसे मिला कि मेरी जीस्त
एहसान चुकाने के लिए कम है दोस्तो
थोड़ा सा राम थोड़ा सा रावण है सभी में
अच्छे बुरे का आदमी संगम है दोस्तो
हालात के पुरज़ोर थपेड़ों के बावजूद
बुलंद अपनी यारी का परचम है दोस्तो
आपके लगाव को जो कर सके बयान
मेरी शायरी में इतना कहां दम है दोस्तो
— भरत मल्होत्रा