लघुकथा

लघुकथा – प्रारंभिक सोपान

आज विनीता अपनी बहू के नए घर की खुली हवा में सांस ले रही थी, पर मन के वातायन से पुरानी यादों को आने से भला कौन और कैसे रोक सकता था!

 कुछ दिन पहले वह अपनी बहू को बंधनों के उसी मोड़ पर खड़ा पा रही थी, जिस पर उसने खुद को एक दिन पाया था. भूली नहीं थी वह उन दिनों को. उफ्फ, कितना भयानक मंज़र था वह! सामने पति की निष्प्राण देह पड़ी थी. छोटी-सी उम्र, छोटे-छोटे दो बच्चे, सबको बिलखता छोड़कर अचानक पति का स्वर्ग सिधार जाना, गहरे सदमे से उसकी रुलाई तक न निकल पाना और रिश्ते-नाते-पड़ोस की छोटी-बड़ी महिलाओं का उससे जबरन रोने का तगादा करना. अब उसका पुत्र वीरता से दुश्मनों का मुकाबला करते हुए जंग में शहीद होकर आया था. पुत्रवधू अपने छोटे-से बच्चे की रुलाई को बंद करवाए या खुद रोए! पर पड़ोस की महिलाएं कहां मानने वाली थीं? वे निरंतर बहू को रोने के लिए उकसा रही थीं. विनीता को अपना समय याद आ गया. उसका पति तो शराब के नशे की भेंट चढ़ गया था. उसने सबको चुप कराते हुए कहा था-

 ”नहीं रोएगी मेरी बहू. उसका पति दुश्मनों का मुकाबला करते हुए बहादुरी से जंग में शहीद हुआ है, कायर की मौत नहीं मरा है.”

 वे सब चुप हो गईं. फिर तेरहवीं तक किसी का कोई ताना-तुनका न चला. उसके बाद उसने सबसे पहले सुपुत्र की समस्त निशानियों को एक संदूक में बंद कर दिया, ताकि पुत्रवधू और पोता अधिक परेशान न होने पाएं. वह जानती थी, कि ऐसा करने के बावजूद दोनों के मन से दिवंगत की याद नहीं ही जा पाएगी, पर कुछ प्रयास तो करना ही था.

 एक महीने बाद ही उसने गांव के एक अकेले रह रहे युवक की रजामंदी से उसके साथ बहू का कन्यादान कर दिया. विनीता की बेटी भी सपरिवार इस विवाह में शामिल हुई थी. सारा गांव तो उसके साहस और जज़्बे के साथ था ही. युवक विदाई के साथ सास को भी विदा करवाकर ले गया था. ऐसा प्यारा बंधन किसी ने कभी देखा ही नहीं था. शायद सामाजिक बेड़ियों की जकड़न खुलने का यह प्रारंभिक सोपान था.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “लघुकथा – प्रारंभिक सोपान

  • लीला तिवानी

    सामाजिक बेड़ियों की जकड़न खोलने के लिए केवल प्रतीक्षा ही नहीं करनी है, प्रयास भी करना होगा. किसी-न-किसी को यह प्रयास सबसे पहले करना होगा. विनीता जे सामाजिक बेड़ियों की जकड़न खोलने के प्रारंभिक सोपान पर कदम रखा, उसके इस प्रारंभिक सोपान ने उसको भी एक अनोखे-से प्यारे बंधन में बांध लिया, जिसकी आकांक्षा प्रायः हर एक को होती है.

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