गज़ल
सभल के अगर दास्त्ताने रहेंगी
कहाँ तक क़ैद आवाज़ें रहेंगी.
चमन जो होखिले राहें रहेंगी
अभी कुछदिन ये सौग़ातें रहेंगी
सैर मेंहो कसरतें लगन ले जो
मिलेंगे क्षणमुलाक़ातें रहेंगी
ज़हन में असर तेरी याद रहेंगी
ज़ुबां पर और क्या चाहें रहेंगी
सफ़र मेंबीत जाना है पहर रेखा
मुसलसलजागती रातें रहेंगी.
सियासी हाल दबदबा रहा ऐसे,
बदल में सोच पहचानें रहेगी।
— रेखा मोहन