लघुकथा – सुखी परिवार
एक घर में चार बेटे बहुएँ ,उनकेबच्चे सभी चारों अपने अपने घर के कोनों में रहते थे| घरके बड़े मुखिया राम लाल जी सबके पिता मध्य में अबकी देख –रेख में जीवन बीता रहे थे| घर का खाना एक ही रसोई में बनता था| मुखिया राम लाल की पत्नी जानकी नौकरों और बहुओं कीमदद में हाथ बटाती| जानकीकहती ,” बहूरीना आज खाने में हलवा बना लेना,बहुतदिन हो गये गाज़रका हलवा नहीं खाया| ला गाज़र धो दूँ|’ इस प्रकार सब मिल-जुल कर हंसते –खेलते जिंदगी बीता रहें थे |छोटी बहू को नई नौकरी की आफर आई,सास-ससुरने उनको खुद ही फैसला लेनेको कहा,” घरसे आपको पूरा सहयोग मिलेगा,रसोईका खर्चा तो सब बाँट लेतेहैं,जोकाम बढ़ेगा हम मिलकर सहयोग करेंगे|घरको फलता –फूलताहर माँ-बाप देखनासपना होताहैं|” किसीका जापा हो,कोईबीमारी हो मिलकर सब आपस मेंसमय पर मदद करते|सब पड़ोसी बहुत उनसे द्बेष करते,कईरिश्तेदार भी बच्चों मेंबिघटन बनाने की कोशिश करते, परपिता राम लाल कहते,”टूटनाबहुत आसान है,जुडना बहुत मुश्किल है,वो हमेशा बच्चे के सामने अच्छे आदर्शरखने की कोशिशमें रहते,ताकिउनकी आदतें उनकी परम्परा बन जाये.|
— रेखा मोहन