लघुकथा

लघुकथा – शहनशाह

आज उसे नतीजे में एक और जीत हासिल हुई थी. जीत के जश्न की खुशी मनाते हुए उसे अपना अतीत याद आ रहा था.
उसे इम्तहान से कभी भी डर नहीं लगा. कारण? वह हर चीज को अच्छी तरह पढ़ता-सुनता-गुनता. नतीजा- समय आने पर वह मन के उस चित्रांकन को सही जगह पर सही ढंग से प्रस्तुत करने में कामयाब होता रहा. उसका यही प्रस्तुतिकरण लेखों-ब्लॉग्स में प्रतिक्रियाओं के रूप में सामने आने लगा. एक दिन एक लेखक ने उसकी प्रतिक्रिया पर लिखा-
”आप प्रतिक्रियाओं के शहनशाह हैं, लेखन के भी शहनशाह हो सकते हैं, अपनी प्रतिभा को पहचानिए और निखारिए.”
उसने इस काम में तनिक भी देर नहीं की. वह जिस साइट से जुड़ता रहा अपनी कामयाबी के झंडे गाड़ता रहा. फिर वह एक और साहित्यिक साइट से जुड़ गया. यहां प्रतियोगिताएं यानी इम्तहान भी होते थे. शीघ्र ही उसे एक प्रतियोगिता का विजेता घोषित किया गया और एडमिन भी बना दिया गया. आज उसी साइट पर वह एक बार फिर विजेता घोषित किया गया था. एक पाठक ने प्रतिक्रिया में लिखा था-
”आप किस्सागोई के शहनशाह हैं, अगली रचना की प्रतीक्षा रहेगी.”
वह इस प्रतिक्रिया में लुब्ध होता, उसके पहले ही उसके सामने एक अनमोल वचन आ गया-
”कामयाबी को दिमाग में मत बिठाइए,
नाकामी को दिल में मत बसाइए”.
और वह फिर एक विनिंग किस्सा लिखने में जुट गया.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “लघुकथा – शहनशाह

  • लीला तिवानी

    व्यावहारिक जगत की आलोचनाओं एवं स्पर्धाओं से विरक्त लेखक ही सुन्दर साहित्य सृजन करता हुआ सफलता के शिखर पर पहुँच सकता है. मेहनत और लगन से सब संभव है. प्रोत्साहन का जादू भी सिर चढ़कर बोलता है. अनमोल वचनों के प्रभाव का जवाब नहीं.

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