मैं नशे में हूँ
उजाले मंद हुए , मैं मयखाने चला गया।
जख्म उजागर ना हो,मैं पीता चला गया।।
जैसे जीवन से कभी नफरत होती थी।
बस मैं वैसे ही जीवन जीता चला गया।।
चंद बूंदे मय की जो मुझ को छू गयी।
मैं मयखाने को खुद जीता चला गया।।
दिल जो अश्को से डूबा रहा बरसो से,
उन अश्को को मय के साथ पीता चला गया।
कुछ उम्मीद थी मुझसे मेरे अपनो को,
कुछ उम्मीद थी मुझे मेरे अपनो से,
जो कर ना पाया मैं अपने सपनो को पूरा,
उन उम्मीदों को पीता चला गया।
मयखाना भी हमराज सा हो गया मेरा,
उसके बिन पूछे ही मैं अपने राज उसे
बताता चला गया,बदनाम कर दिया खुद
मयखाने ने मुझे इसने भी धोखा मुझे दिया,
मय की चंद बूंदों ने प्रियशी की तरह
छुआ मुझको , वो धोखा करती रही
मुझसे और मैं उसको अपना समझ
कर पीता चला गया ।
धोखे खाने की आदत कुछ ऐसी पड़ी,
मय का नशा अभी उतरा ही नहीं था,
धोखो की तलाश मैं फिर निकल पड़ा,
धीरे धीरे जीवन बस यूँ ही निकल गया।