रिश्ते
बड़े सुंदर उजियाले थे,जब गाँव के घरों में छोटे से आले थे।
दिल मे सच्चाई थी,जब गाँव के चूल्हे पर बनते निवाले थे।।
एक साथ चूल्हे के सामने बैठकर खाना खाते भाई सभी।
एक दूसरे के लिए मन से साफ,कभी ना मन के काले थे।।
लालटेन की रोशनी में रात को पढ़ने का अपना मजा था।
रोशनी मन्द थी,पर अपने से बड़ो का सम्मान बड़ा था।।
शहर आकर उजाले बड़े हो गए।
अपने,अपनो के सामने खड़े हो गए।।
गाँव मे जब रहते थे,तब सब भाई कहलाते थे।
शहर में अपना ही भाई अब रिश्तेदार हो गया।
साथ मे जो खाते थे खाना,वो प्यार ही खो गया।
अब एक घर मे पिता पुत्र भी हफ़्तों में मिलते है।
कैसे लगेंगे भाई गले,जब रिश्ते व्हाट्सएप्प पर चलते है।।
चलो हम सब मिलकर कुछ प्रयासों को गले लगाते है।
रोज ना सही सप्ताह में एक बार साथ खाना खाते है।।