कविता

पिया की पाती

. सुनो सखी, सुनो आओ
आई आज पिया की पाती हैं
. रात दिन तड़पू मैं यहाँ
याद जब उनकी आती है।

मैं बिरहन उनके बिन
कैसे काटूं अकेली रतियाँ,
किसे बताऊं अपनी उलझन
किससे करूं मन की बतियाँ।

जब से गए दूर देश पिया
चैन ना आए मुझे‌ दिन रैन,
आंखों में बसी उनकी मूरत
झर झर आंसू बहाए दो नैन।

आयेंगे कह गए वो ना आए
दगा किया मुझसे सांवरिया,
मैं तो उनके प्यार में अब
हो गई मीरा सी बावरिया।

ना करती प्रीत‌ जो जानती
प्रीत किए दुख होय,
प्रीत न करो मुझ सा कोई
जग सारा बैरी होय।

लिखी आज पाती मुझे
जब बीती मेरी उमरिया,
तकते तकते राह उनकी
थक गई जब मोरी अखियाँ।

जो ना होती संग मेरे
मेरी प्यारी प्यारी सखियाँ,
कैसे कटते दिन रैन मेरे
किससे करती मन की बतियाँ।

अब आ जाओ प्राण प्रिये
अब और ना मुझे सताओ,
मैं तो तुम्हारी राधा रानी
आकर श्याम मन में बस जाओ।

पूर्णतः मौलिक ज्योत्सना पाॅल।

*ज्योत्स्ना पाॅल

भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त , बचपन से बंगला व हिन्दी साहित्य को पढ़ने में रूचि थी । शरत चन्द्र , बंकिमचंद्र, रविन्द्र नाथ टैगोर, विमल मित्र एवं कई अन्य साहित्यकारों को पढ़ते हुए बड़ी हुई । बाद में हिन्दी के प्रति रुचि जागृत हुई तो हिंदी साहित्य में शिक्षा पूरी की । सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर एवं मैथिली शरण गुप्त , मुंशी प्रेमचन्द मेरे प्रिय साहित्यकार हैं । हरिशंकर परसाई, शरत जोशी मेरे प्रिय व्यंग्यकार हैं । मैं मूलतः बंगाली हूं पर वर्तमान में भोपाल मध्यप्रदेश निवासी हूं । हृदय से हिन्दुस्तानी कहलाना पसंद है । ईमेल- [email protected]