लघुकथा

लघुकथा – पेरिस्कोप

आज अनिमेष की खुशी का ठिकाना ही नहीं था. उसे पनडुब्बी-निदेशक का महत्त्वपूर्ण पद जो हासिल हुआ था. खुशी के इस सुहाने अवसर पर उसे दिवंगत दादी की बहुत याद आ रही थी.
दादी ने ही उसका नामकरण अनिमेष किया था. अपने नाम के अनुरूप ही वह बिना पलक झपकाए, एकटक ध्यान से अपनी पढ़ाई कर पाया था. उसीका नतीजा आज की शानदार सफलता थी.
दादी ने केवल उसका नामकरण ही नहीं किया था, पल-पल उसके मनोबल को प्रोत्साहन देकर उसे चोटी तक पहुंचाया था.
”बहू, इसको अभिंनव प्रयोग करने दिया कर. आगे जाकर इसे बहुत बड़े-बड़े शोध करने हैं, अभी उसी की तैयारी चल रही है.” अनिमेष का उत्साह चरम पर पहुंच जाता.
मां के डुबकी लगाने से डरने की बात पर जब दादी कहती थीं, ”बहू, तू चिंता मत कर. तेरा यह लाल आज यह डुबकी लगाने से डरता है तो क्या, आगे चलकर यह पनडुब्बियों से डुबकी लगाने वाला है.” तो अनिमेष इंटरनेट पर पनडुब्बी पर सर्च करने बैठ जाता था.
एम. एस.सी के बाद उसने पनडुब्बी पर ही अपना शोधपत्र लिखा था. पनडुब्बी की बात बिना पेरिस्कोप के अधूरी ही रहती, सो पेरिस्कोप के बारे में भी उसने अपने शोधपत्र में बहुत कुछ नया लिखा था.
बिना पलक झपकाए जागरुक रहकर स्थिरदृष्टि से काम करने वाले अनिमेष को अपने काम में मगन रहते हुए भी न जाने क्यों किसी अन्य पेरिस्कोप की तलाश थी.
आज जब उसे पनडुब्बी-निदेशक का नियुक्ति पत्र मिला, तब सहसा उसके मन में एक विचार कौंधा-
”सम्भवतः दादी की आंखों में भी पेरिस्कोप फिट था, जिसके कारण ही वे सब कुछ पहले से देख-जान पाई थीं. उनकी दिव्यदृष्टि से ही मैं सभी बाधाओं को पार करके आज यहां तक पहुंच सका हूं.”

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “लघुकथा – पेरिस्कोप

  • लीला तिवानी

    सच है- पेरिस्कोप एक दिव्यदृष्टि ही तो है, जो बाधाओं को चीरकर अपने लक्ष्य का भेद जान सकती है. दादी की आंखों में भी शायद पेरिस्कोप यानी परिदर्शी एक प्रकाशिक यंत्र या कि कहें दूरदर्शी यंत्र लगा हुआ था, जिसने अनिमेष की असीम-अपार संभावनाओं का दर्शन कर अनिमेष का मार्गदर्शन किया था.

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