लघुकथा- इलाज
आज एक समाचार पढ़ा
गोवा के सीएम मनोहर पर्रिकर अग्नाशय के कैंसर से पीड़ित हैं और रविवार को पर्रिकर पहली बार सार्वजनिक रूप से दिखे थे, जिसमें उनके नाक में नली लगी नजर आई.
अब कैंसर-पीड़ित हैं और नाक में नली लगी हुई है, कुछ तो लोग कहेंगे ही न!
कुछ लोग पर्रिकर पर काम करने का दबाव बनाने का विरोध कर रहे थे, तो कुछ लोग इस तरह की तस्वीर लेने को अमानवीय बता रहे हैं.
डॉक्टरों का मानना है- ”कैंसर में काम करना गलत नहीं है.”
समाचार पढ़कर मुझे मनीषा की याद आ गई. मनीषा, जो ब्लड कैंसर की भयंकर पीड़ा से पीड़ित थी.
दवाइयों की सहायता से डॉक्टर की ओर से जीने को मिले महज 6 महीने.
मनीषा तनिक नहीं घबराई.
उसने इन 6 महीनों का सदुपयोग करने के लिए कैंसर सोसाइटी से संपर्क कर लिया और कैंसर-पीड़ित लोगों की तन-मन-धन से सहायता करती रही.
डॉक्टर की बताई हुई सभी सावधानियां खुद भी रखती और बाकी पीड़ितों को भी रखवाती.
इसी बीच उसने पढ़ा, कि खाना खाने के बाद पानी पीने से कैंसर के कीटाणु सक्रिय हो जाते हैं. ऐसी और अनेक बातें भी वह सबको बताती रही और जागरुक करती रही.
उसे अपने दुःख की याद ही नहीं रही.
एक साल बाद डॉक्टर के पास से उसके पास से चेक अप के लिए फोन आया.
वह चेक अप के लिए गई.
डॉक्टर यह देखकर हैरान रह गये, कि उसके ब्लड में कैंसर का नामोनिशान तक नहीं रहा.
नेकी के काम की व्यस्तता के चलते उसके महा भयंकर रोग कैंसर को हार माननी पड़ी थी.
काम में व्यस्त रहना ही उसका इलाज था.
है न कमाल!
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सकारात्मक काम में व्यस्त रहना कैंसर के साथ अनेक बीमारियों का इलाज है. निष्क्रिय रहकर बीमारी के बारे में सोचते रहने से कोई भी बीमारी और अधिक बढ़ जाती है. काम में लगे रहने से सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न होती है. इससे खुद को तो आनंद मिलता ही है, दूसरों को भी ऐसा करने की प्रेरणा मिलती है.