प्रीत बाबरी
नेह लगाकर भूल गए क्यों
पास बुलाकर दूर गए क्यों।
मैं तो तुम्हरी प्रीत बाबरी ,
वंशी बजाकर छोड़ गए क्यों ।
अँखियाँ मेरी सावन भादों ,
याद तुम्हारी मुझे बहकाबें ।
प्रीत हैं जब राधा और मुरारी ,
सच दुनिया का भूल गए क्यों ।
वो मधुवन की ताल तलैया ,
वो यमुना की महकती शामें ।
मैं जाऊँ तुम पर बलिहारी ,
मुझे अकेला छोड़ गए क्यों ।
ओ कृष्णा तुम ठहरे छलिया ,
रास रचाते सबको लुभाते ।
नैना तरसे मिलन को भारी,
वादा करके भूल गए क्यों ।
— वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़