गज़ल
छपी जब रोज़ इतराज़े रहेंगी
कहाँ तक क़ैद आवाजें रहेंगी.
वतन के वास्ते सब सोचते हैं,
अजी क्या सिर्फ़ ये बातें रहेंगी
सिसकती आस दब आहें रहेंगी
गिरे आँसू बन बरसातें रहेंगी
नज़र में असल सौगातें सदा ही
लिये बस चाहतें गाते रहेंगी
फकत आशा भरी बातें रहेंगी
रेखा बने से शब्द दफन यादें रहेंगी
रेखा मोहन २२/१२/१८