न रुठो बेवजह
न रुठो बेवजह, थोड़ी सी जहमत कर लो।
जाने कल क्या हो, के आओ मौहब्बत कर लो।
ये भी एक रास्ता है, अपने खुदा को पाने का
एक ही बात है, प्यार करो के इबादत कर लो।
हम बँटे है सूबों में,फिर भी हम एक तो है
रहो एक छत के नीचे, चाहे शिकायत कर लो।
यूँ घुट घुट के तुम कब तक जीयोगे दोस्तों
सूरज से आँख मिलाओ, थोड़ी हिम्मत कर लो।
स्वर्ग और नरक सब कुछ यही है “सागर”
बुजुर्गों की सेंवा करो, जमीं को जन्नत कर लो।
— ओमप्रकाश बिन्जवे ‘राजसागर’