मन की उड़ान
उड़ चला मन पंछी एक दिन
दूर, सुदूर चाँद के गाँव,
बैठा जाकर शांति से वह
शीतल चांदनी की छाँव।
झरने की मोहक गूँज
निर्मल, स्फटिक सलील,
पुष्पों से भरी वाटिका
सिर पर आकाश नील।
रंग बिरंगे फूलों पर
डोल रही थी तितलियाँ,
प्रेमी गीत गा रहे थे भंवरें
कर पुष्पों संग अठखेलियाँ।
नेह, प्रीति का अनूठा दृश्य
भर भर देखे दो नैन,
बांटकर मधुरस पुष्प
अनंत सुख भोगे मन।
किरणों से नहाई भोर
चमक रहा तन कंचन,
सुगंध उड़ाकर ले आई
चहूँ दिशा से शुद्ध पवन।
घूलकर सांसों में सुगंध
रोम रोम हुआ आह्लादित,
मन बावरा वश में नहीं
सुनकर सुमधुर नेह संगीत।
पक्षियों का चहचहाना
घोलती कानों में मधुरस,
आनंदित हो मचला ह्रदय
शांति से भर गया अंतस।
ऐसी सुहानी भोर की छवि
प्रकृति की वह मोहकता,
था कोई कल्पना लोक वह
कुछ और है वास्तविकता।
टूटे जो सपने तो जाना
कैसा है यथार्थ संसार,
किरणों को ग्रस रहा राहु
चाहुँ दिशा फैला अंधकार।
हिंसा, द्वेष,लोभ,घृणा
फैला चुके हैं अपनी बाहें,
भटक रहा पथ से पथिक
मिलती नहीं मंजिल की राहें।
अति सुख की कामना में
सुख से हो रहे मानव वंचित,
खुशी के दो पल ना मिले
मिल रहे कष्ट अवांछित।
धरती हमारी बन जाए
चांद सा प्यारा एक गाँव,
शुद्ध हवा में श्वास ले सभी
मिले सबको शांति की छाँव।
पूर्णतः मौलिक-ज्योत्स्ना पाॅल।