कविता

मन की उड़ान

उड़ चला मन पंछी एक दिन
दूर, सुदूर चाँद के गाँव,
बैठा जाकर शांति से वह
शीतल चांदनी की छाँव।

झरने की मोहक गूँज
निर्मल, स्फटिक सलील,
पुष्पों से भरी वाटिका
सिर पर आकाश नील।

रंग बिरंगे फूलों पर
डोल रही थी तितलियाँ,
प्रेमी गीत गा रहे थे भंवरें
कर पुष्पों संग अठखेलियाँ।

नेह, प्रीति का अनूठा दृश्य
भर भर देखे दो नैन,
बांटकर मधुरस पुष्प
अनंत सुख भोगे मन।

किरणों से नहाई भोर
चमक रहा तन कंचन,
सुगंध उड़ाकर ले आई
चहूँ दिशा से शुद्ध पवन।

घूलकर सांसों में सुगंध
रोम रोम हुआ आह्लादित,
मन बावरा वश में नहीं
सुनकर सुमधुर नेह संगीत।

पक्षियों का चहचहाना
घोलती कानों में मधुरस,
आनंदित हो मचला ह्रदय
शांति से भर गया अंतस।

ऐसी सुहानी भोर की छवि
प्रकृति की वह मोहकता,
था कोई कल्पना लोक वह
कुछ और है वास्तविकता।

टूटे जो सपने तो जाना
कैसा है यथार्थ संसार,
किरणों को ग्रस रहा राहु
चाहुँ दिशा फैला अंधकार।

हिंसा, द्वेष,लोभ,घृणा
फैला चुके हैं अपनी बाहें,
भटक रहा पथ से पथिक
मिलती नहीं मंजिल की राहें।

‌ अति सुख की कामना में
सुख से हो रहे मानव वंचित,
खुशी के दो पल ना मिले
मिल रहे कष्ट अवांछित।

धरती हमारी बन जाए
चांद सा प्यारा एक गाँव,
शुद्ध हवा में श्वास ले सभी
मिले सबको शांति की छाँव।

पूर्णतः मौलिक-ज्योत्स्ना पाॅल।

*ज्योत्स्ना पाॅल

भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त , बचपन से बंगला व हिन्दी साहित्य को पढ़ने में रूचि थी । शरत चन्द्र , बंकिमचंद्र, रविन्द्र नाथ टैगोर, विमल मित्र एवं कई अन्य साहित्यकारों को पढ़ते हुए बड़ी हुई । बाद में हिन्दी के प्रति रुचि जागृत हुई तो हिंदी साहित्य में शिक्षा पूरी की । सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर एवं मैथिली शरण गुप्त , मुंशी प्रेमचन्द मेरे प्रिय साहित्यकार हैं । हरिशंकर परसाई, शरत जोशी मेरे प्रिय व्यंग्यकार हैं । मैं मूलतः बंगाली हूं पर वर्तमान में भोपाल मध्यप्रदेश निवासी हूं । हृदय से हिन्दुस्तानी कहलाना पसंद है । ईमेल- [email protected]