ग़ज़ल
हदों से यूँ सितम की पार जाकर याद रखना
सुकूं मिलता नही है दिल दुखाकर याद रखना
खड़ा है झूठ की बुनियाद पर ऊँचा मकां जो
गिरेगा एक दिन ये भर भराकर याद रखना
वो जिनके वास्ते छोड़ा हमें मझधार तुमने
दगा देंगे तुम्हें अपना बनाकर याद रखना
किये हैं जो गुनाहों की सजा हर हाल होगी
सकोगे रख नही उनको छुपाकर याद रखना
मिलन गर दो दिलों का तुम यहाँ होने न दोगे
मिलेंगी रूह उनकी पार जाकर याद रखना
ढ़ले जब ज़िन्दगी की शाम तो यारो जहां से
विदा करना मुझे सब मुस्कुराकर याद रखना
सिवा इनके जहां को दे सका कुछ भी नही मैं
मुझे ये गीत मेरे गुनगुनाकर याद रखना
— सतीश बंसल