लघुकथा – संस्कार
”अंकल, बिटिया की शादी का कॉर्ड लाया हूं, आपको आकर बिटिया को आशीर्वाद भी देना है और सारा काम भी संभालना है.” किशोर ने कहा.
”बहुत-बहुत मुबारक हो बेटा, हम तो कब से बिटिया की शादी की प्रतीक्षा कर रहे थे. निश्चिंत रहो, हम अवश्य आएंगे, बिटिया को आशीर्वाद भी देंगे और काम भी संभालेंगे. अरे हां, लड़का अपनी बिरादरी का ही है न!” अंकल की स्वाभाविक उत्सुकता थी.
”अंकल. लड़का अपनी बिरादरी का तो नहीं है, पर बहुत सुशील और समझदार है. बिटिया के साथ पढ़ता था. आपको याद होगा, हमारी प्रेम विवाह भी ऐसे ही हुआ था. मेरी पत्नी भी बिरादरी की नहीं थी, लेकिन परिवार में किसी को उससे कोई शिकायत नहीं है.”
”बिलकुल याद है बेटा. यह भी सच है, कि बहू ने बड़ों की इज़्ज़त में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी. वास्तव में बात जात-बिरादरी की नहीं होती है, संस्कारों और आपसी समझ की होती है”.
बहुत सुंदर भावभरी रचना. हार्दिक बधाई .
आदरणीय ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी, यह जानकर अत्यंत हर्ष हुआ, कि आपको यह रचना सुंदर भावभरी लगी और पसंद आई. रचना को आप जैसे वरिष्ठ साहित्यकारों का आशीर्वाद मिलना सौभाग्य की बात है. रचना पर समय देने के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद.
बात जात-बिरादरी की नहीं होती है, संस्कारों और आपसी समझ की होती है. ऐसी ही अनेक कामयाब शादियों का हम पहले भी विभिन्न रचनाओं में उल्लेख कर चुके हैं.