जाने क्या मन को होने लगा
मन इंद्रधनुषी रंगों में खोने लगा
सब जाग रहे हैं मन सोने लगा
ये बातें क्यों मन गुदगुदाने लगीं
ये जाने क्या इस मन को होने लगा
ये बिखरी सी ज़ुल्फ़ें और ये साँसें महकी
क्यों मन को टटोलती ये कुछ बातें बहकी
मन ने अचानक जो ये सपने देखे
तो सपनों की माला पिरोने लगा
ये जाने क्या इस मन को होने लगा
ये बातें हैं उम्र की या उससे कुछ ज़्यादा
जो कोई अजनबी छुप के कर गया वादा
कि आएगा वो मुझसे सपनों में मिलने
ये सुनते ही मन हर पल सोने लगा
ये जाने क्या इस मन को होने लगा
तन्हाई में महफ़िल और महफ़िल में तन्हाई
अंगड़ाई में नींदें और नींदों में अंगड़ाई
ये कैसी हुई है हालत इस मन की
मन क्यों मुझको ऐसे संजोने लगा
ये जाने क्या इस मन को होने लगा
— प्रियंका अग्निहोत्री ‘गीत’