गीतिका
पाँव के संग पायल खनकती सखी
देख नथ मोर घायल सुलगती सखी
आज तड़के सवेरे नजर लड़ गयी
होठ लाली लुभायल ललकती सखी।।
काश होते सजन घर अंगना मिरे
साध मन की पुरायल सँवरती सखी।।
हाथ कंगन नगीना अंगुली सजन
चुलबुले नैन काजल लिपटती सखी।।
सरस चूनर हमारी सबुज रंग की
लाल धानी रँगायल मचलती सखी।।
आँख कजरे व गजरे की लुका- छुपी
मोह जाते वो बादल बरसती सखी।।
याद गौतम सरारत सिसकने लगे
क्या कहूँ द्वंद पलपल पकड़ती सखी।।
— महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी